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Saturday, December 30, 2023

डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जीवनी!

 डॉ भीमराव अम्बेडकर की जीवनी.    

By:-Mahesh Kumar Verma

डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जीवनी: पूरी कहानी रिसर्च द्वारा - महेश कुमार वर्मा

भारतीय जनता के जीवन में महापुरुषों का विशेष महत्व होता है, जो समाज में परिवर्तन लाने के लिए अपना पूरा जीवन अर्पित करते हैं। डॉ. भीमराव अम्बेडकर एक ऐसे महापुरुष हैं, जिन्होंने अपने विचारों, कार्यों और संघर्षों के माध्यम से भारतीय समाज में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सुधार की प्रेरणा दी। डॉ. भीमराव अम्बेडकर के जीवन की एक पूरी कहानी इस ब्लॉग में हम आपके साथ साझा कर रहे हैं, जो 'महेश कुमार वर्मा' द्वारा शोधित गई है।

डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर 14 अप्रैल, 1891 में मध्य प्रदेश के महू (जो आजकल मध्य प्रदेश में स्थित है) में एक श्रमिक परिवार में जन्मे। उनके पिता ने उन्हें शिक्षा का महत्व समझाया और वे बाद में शिक्षा के क्षेत्र में एक उच्च स्थान प्राप्त करने में सफल रहे। वे अच्छे छात्र रहे और ब्रिटिश शासन के जमीनी एजेंट बनने के बावजूद, उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी।

सफलतापूर्वक छात्रवृत्ति पाने के बाद, डॉ. अम्बेडकर ब्रिटिश कोलंबो उच्चतर विद्यालय, बॉम्बे विद्यापीठ और कॉलीज लंबर्सनसे, लंदन विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने का सुनहरा अवसर प्राप्त किया। उन्होंने अपनी पढ़ाई में उच्च प्रायोगिकी की शिक्षा प्राप्त की, जिससे उन्हें विशेष ज्ञानवर्धन का मौका मिला।

वापस भारत लौटने के बाद, उन्होंने विभिन्न व्यापारी और भारत सरकार के पदों पर कार्य किया, लेकिन उनकी मुख्य आकर्षण सक्रिय रूप से जनहित में योगदान देने की ओर रही। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय नागरिकों को सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक अधिकार प्रदान करने के लिए कानून में संशोधन करा।

उनकी जीवनी में एक और अहम योगदान है, जो वे दलित समाज के लिए किए गए संघर्ष हैं। डॉ. अम्बेडकर को दलितों के अधिकारों की रक्षा करने, उनके उत्थान और समाज में सम्मान प्राप्त कराने के लिए अग्रगण्य रूप से समाजिक सुधार के लिए समर्पित होने की प्रेरणा थी।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर के एक अद्भुत संघर्ष के दौरान, वे नौ वर्षों तक भारतीय संविधानसभा के मुख्य विचारधारी रहे और कानून के माध्यम से राष्ट्रीय एकता और भारतीय समाज में न्याय सुनिश्चित की।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर की मृत्यु 6 दिसंबर, 1956 में हुई, लेकिन उनकी उपलब्धियां और योगदान हमेशा याद रखे जाएंगे। आज भी उनके विचारों और समर्पण को सम्मान और प्रशंसा मिलती है, जो वे समाज में परिवर्तन लाने के लिए किए गए। उनके आदर्शों और मतभेदों को आधार बनाते हुए ही हम आगे बढ़ सकते हैं और भारत को आगे बदने का दिशा दे सकते हैं।

सामाजिक सुधार, आर्थिक प्रगति और न्याय के मामले में एक सशक्त और समग्र भारतीय समाज के निर्माण का सपना देखने वाले डॉ. भीमराव अम्बेडकर के योगदान को संजीवनी मानकर हम मानवता को प्रगति की ओर ले जा सकते हैं।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जीवन और उनके योगदान वास्तव में प्रेरणादायक हैं और हमें सदैव उन्हें सम्मान और गर्व महसूस करना चाहिए। धन्यवाद।
Dr Bhimrao Ambedkar - Jivani Blog

Friday, December 29, 2023

भारतीय शिक्षा व्यवस्था

              भारतीय शिक्षा व्यवस्था

By:-Mahesh Kumar Verma

हमारे देश में शिक्षा प्रणाली अपनी खामियों के चलते काफी विवादास्पद है। दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारतीय शिक्षा प्रणाली को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसके आधार पर बहुत सारे विद्यार्थी और विद्यार्थियों को आगे की पढ़ाई में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। इस ब्लॉग में हम इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे और बताएँगे कि भारतीय शिक्षा प्रणाली में खामियां कौन सी हैं और उनके कारण क्या हैं।

शिक्षा में मूलभूत संगठनात्मक होने की जरूरत होती है, जिसमें न सिर्फ शिक्षा के मूल्‍यों का सम्मान किया जाए, बल्की शिक्षा प्रणाली की सुधार करने के लिए समुचित व्यवहारिक उपायों को ढूंढ़ने की भी जरूरत होती है। भारतीय शिक्षा प्रणाली में कुछ मुख्य समस्याएं हैं जो हमें आगे के कदम उठाने में अवरोध बानी रहती हैं।

पहली बड़ी समस्या है बार बार बदलती हरियाणा सत्ता। 
दूसरी समस्या है अवसरों की कमी। 
तीसरी समस्या है पठन-लेखन कौशल की कमी। 
चौथी समस्या है अच्छे शिक्षकों की कमी। 
पांचवी समस्या है भूमिका में बाधा डालने वाली आपसी तकरार। 
छठी समस्या है उच्च शिक्षा का अवहेलना-अनुकरण। 
सातवीं समस्या है प्राथमिकताएँ। 
आठवीं समस्या है शिक्षा में कंप्यूटर सहायता की कमी। 
नवीं समस्या है शारीरिक कार्यों की कमी। 
दसवीं समस्या है सामान्यज्ञान की कमी।

इन समस्याओं में से सबसे पहली समस्या है बच्चों की बढ़ती यात्राएं। हमारी प्रथमिकता होनी चाहिए बच्चे पढ़ाई करते समय बार बार एक नए शहर में जाएं। यह बच्चों के पढ़ाई में बाधा डालती है और उन्हें नये-नये वातावरण में अनुकूलता बना पानी पड़ती है। इससे उनकी पुरानी दोस्तों से दूरी होती है और ध्यान व धैर्य की कमी होती है।

दूसरी प्रमुख समस्या है अवसरों की कमी। कई ऐसे छात्र जहां शिक्षा लेने के अवसरों की कमी के कारण आगे के कदम उठा नहीं पाते हैं, वहीं कुछ लोग तो धर्मनिरपेक्षता, सामप्रदायिकता और आरक्षण के कारण छूट जाते हैं। इसके चलते वे एक अच्छे रिक्त अवसर को खो देते हैं और आगे की पढ़ाई में रुचि खो देते हैं।

तीसरी समस्या होती है पठन-लेखन कौशल की कमी की। भारतीय शिक्षा प्रणाली में कुछ ऐसे तौर-तरीके हैं, जिनसे शिक्षार्थियों को अच्छे संचालन व निरनिराला बचाओं का अर्थ नहीं आता है। इसके चलते उनका पठन-लेखन कौशल बिल्कुल कविता हो जाता है, जिसके कारण उनकी पढ़ाई को नुकसान पहुंचता है।

चौथी समस्या है अच्छे शिक्षकों की कमी की। हमारी बड़ी सामस्या है कि शिक्षा क्षेत्र में बहुत सारे अच्छे और capable शिक्षक नहीं हैं, जो हमें अच्छी और गुणवत्ता युक्त शिक्षा दे सकें। कुछ शिक्षक तो एक अच्छा व्यापारी बन सकते हैं, लेकिन शिक्षा के लिए इतना ही कहना है कि उनमें वह जागरूकता या मर्यादा नहीं होती। इसी कारण छात्रों को संघर्ष जारी रखना पड़ता है और वे उच्चतर शिक्षा में अनुचित अवसरों को खो देते हैं।

पांचवीं समस्या होती है भूमिका में बाधा डालने वाली आपसी तकरार की। हमारी शिक्षा प्रणाली में बहुत सारे अध्यापक-छात्र संघों को यह लगाने में धैर्य और समझ आती है कि वे सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं और उन्हें सबसे ज्यादा सचेतता की आवश्यकता है। जो शिक्षा प्रणाली में बेहतरी लाने के लिए प्रतिभाशाली गुरुओं के साथ मिलकर काम करते हैं, वह विद्यार्थियों के लिए बेहतर अवसर बनाते हैं।

इसके अलावा उच्च शिक्षा का अवहेलना-अनुकरण, प्राथमिकताएँ, शिक्षा में कंप्यूटर सहायता की कमी, शारीरिक कार्यों की कमी और सामान्यज्ञान की कमी भी शिक्षा प्रणाली की खामियों में से हैं।

इन सभी समस्याओं के समाधान के बारे में सोचने की आवश्यकता है, ताकि हमारी शिक्षा प्रणाली का समुचित विकास हो सके और हमारी नई पीढ़ी बेहतर शिक्षा के माध्यम से हमारे देश के विकास को गति दे सके। यह समस्याएं हमें सबका सामान अवकाश प्रदान करने की आवश्यकता होने के कारण लंबे समय तक असुरक्षा के साथ रहने के लिए बाध्य करती हैं।

Thursday, December 28, 2023

Dahej pratha

                     दहेज प्रथा 


By:-Mahesh Kumar Verma


दहेज प्रथा समाज के विकास का बड़ा रुख है, फिर भी यह भारतीय समाज की एक मान्यता बन चुकी है। दहेज प्रथा किसी एक पेशेवर वर्ग की अवस्था नहीं है, बल्कि यह सभी तरह के वर्गों में वक्रशील हुई है। अत्यधिक न्याय-व्यवस्था और महिला सशक्तिकरण के दृष्टिकोण से यह अत्यंत घातक है। इस लेख में, हम दहेज प्रथा के प्रभाव, कारण और निवारण के बारे में चर्चा करेंगे।

दहेज प्रथा का मतलब है कि विवाह के समय दूल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन के परिवार को अनिवार्य रूप से सामग्री, नकद, सदेव सामग्री और अन्य चीजें देनी होंगी। इस प्रक्रिया में, दुल्हा और उसके परिवार में आर्थिक संकट हो सकता है और दुल्हन के परिवार की संपत्ति और सशक्तिकरण मार्ग से नुकसान होता है।

दहेज प्रथा का प्रभाव सामाजिक और मानसिक रूप से दोनों पक्षों पर होता है। दुल्हन को अगर उच्च दफ्तर जैसे संक्रांतियाँ नहीं मिलती हैं, तो वह तनाव की स्थिति में रहती है। इसके अलावा, उन्हें अपने पति और सास-ससुर के अपेक्षित कार्यों का निर्दिष्ट समय पर पूरा करना पड़ता है। दहेज के प्रत्यारोपण से, वैवाहिक जीवन की स्वतंत्रता कम हो जाती है और दुल्हन को पति और ससुराल के दबाव का सामना करना पड़ता है। मानसिक रूप से, यह सोच का कारण बनता है कि लड़कियाँ नकद में मापी जाती हैं और उनके बारे में लड़कियों की अधिकार के बजाय मात्र वस्त्रों और साहित्यों पर ध्यान दिया जाता है।

दहेज प्रथा के पीछे कुछ मुख्य कारण हैं। पहली बात, लोगों की सोच में विज्ञान की कमी होती है, जहां मान्यताओं और अंधविश्वासों की प्रबलता होती है। दूसरे, यह समाज में पुरुषों की सत्ता और स्थिति को मजबूत बनाता है। तीसरी, दहेज के मामले में अन्य जन सामाजिक और मान्यता समाज की पहुंच से दूर होने के कारण मान्यता प्राप्त नहीं कर पाती हैं।

दहेज प्रथा को निवारण करने के लिए समाज को मिलकर कड़ी मेहनत करनी चाहिए। इसके लिए, सरकार को नियम और अधिनियम बनाने चाहियें जिससे यह सामाजिक दुर्गटना समाप्त हो सके। सामाजिक षडयंत्र का आग्रह करने के साथ, हर स्त्री को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में शिक्षा मिलनी चाहिए। उच्चतम विद्यालयों, महिला शोध संस्थानों और सामाजिक संगठनों को एकत्रित होने की आवश्यकता होती है, ताकि वे मानवीय अधिकार और न्याय पर ध्यान दे सकें।

दहेज प्रथा को खत्म करना हम सभी का जिम्मेदारी है। इससे नहीं सिर्फ महिला सशक्तिकरण की बढ़ती है, बल्कि सामाजिक संतुलन और भारतीय समझौते का संरक्षण भी होता है। चाहिए इस दहेज प्रथा को समाज से हटाने के लिए हमें साझा मेहनत करना चाहिए।

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