भगत सिंह के संघर्ष
By:-Mahesh Kumar Verma
भगत सिंह - एक महान योद्धा और क्रांतिकारी
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की इतिहास की सर्वोच्च मान्यता भगत सिंह हैं। उन्होंने अपने बाल्यकाल में ही स्वतंत्रता के लिए आंदोलन चलाने का संकल्प बना लिया था। उनकी एकाग्रता, विचारशीलता और अद्वितीय साहस ने हर भारतीय के मन में गहरी छाप छोड़ी है। इस लेख में मैं भगत सिंह की विस्तृत जीवनी का वर्णन कर रहा हूँ।
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को पंजाब के गुजरानवाला ज़िले में हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशेंचंद था और माता का नाम विद्यावती था। उनका बचपन बहुत संघर्षमय और गरीबी भरा रहा है। जाति आधारित अंतर के कारण उनकी परिवारिक स्थिति भी मजबूत नहीं रही। फिर भी उन्होंने पढ़ाई में विशेष हुनर दिखाया और अपने ज्ञान और प्रतिभा के दम पर लोगों की आंखों में चमक लेकर आए।
जब भगत सिंह अपनी स्नातक की पढ़ाई सम्पूर्ण कर चुके थे, तब कैथोलिक स्कूल में नाँदेड में भी कई वर्ष तक पढ़ाई की थी। वहाँ की एक मिशनरी शिक्षिका ने उनकी सशक्त दृष्टि देख उन्हें उदारता से आगे बढ़ाने का अवसर दिया। यही उनकी सोच को बदलकर उन्हें क्रान्तिकारी की ओर ले गया। उन्होंने भगत सिंह का नाम अपना उच्चारण परिवर्तित करके रख लिया था, जिसका मतलब होता है "महान संतान"।
भगत सिंह का संघर्ष सविंधानिकाल से शुरू हुआ। हिंदी और अंग्रेजी साहित्य के प्रतिष्ठित सम्पादकीय में वे अपनी रचनाएँ प्रकाशित करते थे, जिससे उन्हें अपार लोकप्रियता मिली। इसी के परिणामस्वरूप हर भारतीय उन्हें महानतम योद्धा के रूप में जानता है।
1925 में सिमन आयोग ने वैदेशिक भुगतान के खिलाफ भारतीय तालबंदी को कमजोर करने के लिए सामरिक कार्यक्रम शुरू किया। भगत सिंह ने इस क्रांति का प्रेरणा स्वरूप एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था "अनावश्यक हिंसा का प्रश्न"। इस लेख में उन्होंने चरम लता बजाने के अद्वितीय सरल वक्तव्य की मदद से हिंदी और अंग्रेजी बोलने वाले सभी लोगों को चुनौती दी।
बाद में, 1928 में भगत सिंह ने भागत सिंह, सुखदेव और राजगुरू पंथा की सुसभ्यता के बीच कैने भांडार धरना कैंप में हिस्सा लिया। इस धरना में भगत सिंह का समर्थन करने में लोग बहुत उत्सुक थे, और धरना के बाद उन्हें राष्ट्रमंडलीय कमेटी का समर्थन मिला।
लेख के अच्छे संदर्भ देने के लिए, मैं यहीं वाक्य लेख रहा हूँ। यहाँ तक कि इस महानायक के पंद्रह मार्च 1931 को हंगामा तोड़ने का रेशम काटती चाकू के तहत होने के बावजूद भी ये कहानी जारी रहती है। सबसे अधिक प्रभावशाली तथ्य यह है, कि भगत सिंह ने 23 साल की छोटी आयु में ही स्वतंत्रता संग्राम की जंग में अपना प्राण न्योछावर कर दिया।
इस पूरी करावासी में पता चलता है कि भगत सिंह स्वतंत्रता के लिए एक सच्चे क्रांतिकारी थे। उनका जोश, दृढ़ता और संकल्प अभी भी हमारी प्रेरणा स्रोत हैं। उनका नाम विश्व योद्धा सूची में लिख देना चाहिए, क्योंकि वे सिर्फ़ भारतीयों को नहीं, बल्की पूरे दुनिया को भी गर्व होता है। उनकी बहादुरी
No comments:
Post a Comment