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Thursday, December 28, 2023

Dahej pratha

                     दहेज प्रथा 


By:-Mahesh Kumar Verma


दहेज प्रथा समाज के विकास का बड़ा रुख है, फिर भी यह भारतीय समाज की एक मान्यता बन चुकी है। दहेज प्रथा किसी एक पेशेवर वर्ग की अवस्था नहीं है, बल्कि यह सभी तरह के वर्गों में वक्रशील हुई है। अत्यधिक न्याय-व्यवस्था और महिला सशक्तिकरण के दृष्टिकोण से यह अत्यंत घातक है। इस लेख में, हम दहेज प्रथा के प्रभाव, कारण और निवारण के बारे में चर्चा करेंगे।

दहेज प्रथा का मतलब है कि विवाह के समय दूल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन के परिवार को अनिवार्य रूप से सामग्री, नकद, सदेव सामग्री और अन्य चीजें देनी होंगी। इस प्रक्रिया में, दुल्हा और उसके परिवार में आर्थिक संकट हो सकता है और दुल्हन के परिवार की संपत्ति और सशक्तिकरण मार्ग से नुकसान होता है।

दहेज प्रथा का प्रभाव सामाजिक और मानसिक रूप से दोनों पक्षों पर होता है। दुल्हन को अगर उच्च दफ्तर जैसे संक्रांतियाँ नहीं मिलती हैं, तो वह तनाव की स्थिति में रहती है। इसके अलावा, उन्हें अपने पति और सास-ससुर के अपेक्षित कार्यों का निर्दिष्ट समय पर पूरा करना पड़ता है। दहेज के प्रत्यारोपण से, वैवाहिक जीवन की स्वतंत्रता कम हो जाती है और दुल्हन को पति और ससुराल के दबाव का सामना करना पड़ता है। मानसिक रूप से, यह सोच का कारण बनता है कि लड़कियाँ नकद में मापी जाती हैं और उनके बारे में लड़कियों की अधिकार के बजाय मात्र वस्त्रों और साहित्यों पर ध्यान दिया जाता है।

दहेज प्रथा के पीछे कुछ मुख्य कारण हैं। पहली बात, लोगों की सोच में विज्ञान की कमी होती है, जहां मान्यताओं और अंधविश्वासों की प्रबलता होती है। दूसरे, यह समाज में पुरुषों की सत्ता और स्थिति को मजबूत बनाता है। तीसरी, दहेज के मामले में अन्य जन सामाजिक और मान्यता समाज की पहुंच से दूर होने के कारण मान्यता प्राप्त नहीं कर पाती हैं।

दहेज प्रथा को निवारण करने के लिए समाज को मिलकर कड़ी मेहनत करनी चाहिए। इसके लिए, सरकार को नियम और अधिनियम बनाने चाहियें जिससे यह सामाजिक दुर्गटना समाप्त हो सके। सामाजिक षडयंत्र का आग्रह करने के साथ, हर स्त्री को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में शिक्षा मिलनी चाहिए। उच्चतम विद्यालयों, महिला शोध संस्थानों और सामाजिक संगठनों को एकत्रित होने की आवश्यकता होती है, ताकि वे मानवीय अधिकार और न्याय पर ध्यान दे सकें।

दहेज प्रथा को खत्म करना हम सभी का जिम्मेदारी है। इससे नहीं सिर्फ महिला सशक्तिकरण की बढ़ती है, बल्कि सामाजिक संतुलन और भारतीय समझौते का संरक्षण भी होता है। चाहिए इस दहेज प्रथा को समाज से हटाने के लिए हमें साझा मेहनत करना चाहिए।

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